रंगमंच का एक महत्वपूर्ण लोक शैली है नौटंकी

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लुप्त होती लोक नाटय़ शैली ‘नौटंकी’ को फिर से एक बार पुर्नजीवित करने और उसे खोया हुआ सम्मान दिलाने के लिए ख्याति प्राप्त लोकनाटय़ निर्देशक एवं चिंतक अतुल यदुवंशी के निर्देशन में देश की राजधानी दिल्ली में तीन दिवसीय नौटंकी महोत्सव का आयोजन छह अक्टूबर से किया जाएगा, जिसमें तीन नाटकों मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बुढ़ी काकी’, ‘बहुरूपिया’ एवं ‘दास्तान-ए-लैला मजनू’ का मंचन कमानी साभागार में किया जाएगा। तीन दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव का आयोजन प्रयागराज की नाटय़ संस्था ‘स्वर्ग रंगमंडल’ की ओर से ‘ग्रो फंड’ के सहयोग से किया जा रहा है। इस बात की जानकारी अतुल यदुवंशी ने आज यहां प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस काँफ्रेस में कही। इस मौके पर जानेमाने साहित्यकार व आलोचक डा. ज्योतिष जोशी और कवि एवं लेखक श्लेष गौतम आदि मौजूद थे।

अतुल यदुवंशी ने नौटंकी को रंगमंच की एक महत्वपूर्ण विद्या बताते हुए कहा कि भरतमुनी के ‘नाटय़शास्त्र’ से भी हजारों साल पुरानी इस शैली को बचाने के लिए इस तरह के फेस्टिबल की जरूरत है। पूछे गए सवाल के जबाव में उन्होंने कहा कि नौटंकी को सबसे ज्यादा नुकसान पारसी थियेटर के देश में आने के बाद शुरू हुआ। उन्होंने कहा कि जिस तरह से नदी में गंदगी के मिलने से नदी की पानी गंदी हो जाती है ठीक उसी तरह से नौटंकी में भी तमाम रंग शैलियों से कलाकार आये और इसमें धीरे-धीरे अश्लीलता बढती गयी, जिसके बाद से इसे आम लोगों ने दूरी बना ली, लेकिन हमारी कोशिश है कि एक बार फिर से उस खोए हुए सम्मान को लौटायें। ज्योतिष जोशी ने कहा कि नौटंकी पराम्परिक नाटय़ शैलियों में सबसे पुरानी शैली है और यह भरतमुनी के नाटय़ शास्त्र से भी पुरानी है। नौटंकी में इस्तेमाल होने वाले नगाड़े का जिक्र भरतमुनी ने अपने नाटय़ शास्त्र में किया है। उन्होंने हबीब तनबीर की एक कथन का हवाला देते हुए कहा कि नाटक प्रतिरोध की कला है और हबीब तनवीर ने कहा था कि जब सवाल होंगे तो नाटक होगा और जब सवाल नहीं होगा तो नाटक नहीं होगा। उन्होंने कहा कि नौटंकी बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश की एक महत्वपूर्ण नाटय़ शैली है। शैलष गौतम ने नौटंकी से जुड़ी बाते कही।