शाहिद माल्या एक भारतीय हिंदी पार्श्व गायक हैं। शाहिद मुख्यत: पंजाबी व हिंदी फिल्मों में गायिकी करते हैं।

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शाहिद माल्या का जन्म श्री गंगानगर में हुआ था। उनका परिवार वर्ष 2002 में मुंबई शिफ्ट हो गया। उन्होंने अपने हिंदी सिनेमा करियर की शुरुआत फिल्म यमला पगला दीवाना की गुरबानी से की। उन्हें हिंदी सिनेमा में पहचान पंकज कपूर निर्देशित फिल्म मौसम के गाने रब्बा में तो मर गया ओये गाने से मिली। शाहिद के इन गानों ने उन्हें रातों-रात हिंदी सिनेमा का सुपरस्टार बना दिया। बॉलीवुड सिंगर शाहिद माल्या की कहानी भी किसी दिलचसिप किस्सों से कम नहीं है। म्यूजिक के प्रोफासर बनने से लेकर फिल्म मैसम के प्रीमियर तक उन्होंने अपने जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं को साझा किया।शाहिद कपूर स्टारर फिल्म ‘मौसम’ का गाना रब्बा मैं तो मर गया ओय को अपनी आवाज में सजाया है। फिल्म का गाना इतना हिट साबित हुआ और शाहिद माल्या बॉलीवुड में बन गए प्लेबैक सिंगर। इसी फिल्म में शाहिद ने इक तू ही तू भी गीत भी गाया, जो उनके लिए एक बड़ा ब्रेक साबित हुआ। हालांकि, शाहिद माल्या ने अपने बॉलीवुड करियर की शुरूआत फिल्म यमला पगला दिवाने में गुरबाणी के की थी। शाहिद अपने अब तक के बॉलीवुड के सफर से बेहद खुश हैं। शाहिद का कहना है कि सबकी जिंदगी में कुछ ना कुछ उतार चढ़ाव जरूर आते हैं। उनका कहना है कि कोरोना के समय में कुछ मुकाम हासिल करने के लिए हमने स्ट्रगल किया वो शायद हम कहीं ना कहीं भूल गए हैं। सबकी कामयाबी की कहानी होती है। कोरोना के कारण पिछले दो साल में जो हालात आए हैं, वो शायद किसी स्ट्रगल से कम नहीं है। संतुष्टी है कि अपने सपने को लेकर काम अभी भी जारी है और मम्मी-पापा भी खुश हैं। शाहिद माल्या के बारे में एक दिलचस्प बात ये भी है कि वह म्यूजिक का प्रोफैसर बनने गए थे लेकिन किस्मत ने रुख पलटा और आज वे एक शानदार बॉलीवुड सिंगर है। इस किस्से के बारे में बात करते हुए शाहिद ने बताया कि बंटवारे के समय उनके घर में दादा जी ने गाने को सीमित कर दिया। हालांकि, उनके पिता जी गाने को लेकर पैशनेट थे और वह रफी साहब को काफी सुना करते थे। उनके पिता जी हमेशा गाने को लेकर बातें करते कि इस दिशा में वह कुछ करना चाहते हैं। पापा के सपने हमेशा फॉलो किया शाहिद माल्या बताया कि उनके पापा बहुत कुछ करना चाहते थे। उनके पापा खुद म्युजिक के प्रोफैसर थे। 70 के दशक में उनके पापा ने स्ट्रगल शुरू किया। लेकिन 90 के दशक में उनके पापा के साथ हुई दुर्घटना ने उनके जीवन का रुख मोड़ दिया। शाहिद ने बताया कि वास्तव में उनके पापा का सपना उनको फॉलो कर रहा था। टर्निंग प्वाइंट उस वक्त आया जब शाहिद माल्या ने मन बनाया कि वह अपने पापा के सपने को पूरा करने की ठान ली।
10 साल की मेहनत आखिरकार रंग लाई शाहिद माल्या अपने बीते दिनों को याद करके कहते हैं कि उन्होंने मन बना लिया था कि इस सपने को पूरा करेंगे। जिसके बाद वह पूरी फैमिली के साथ बॉम्बे आए और 10 साल तक खूब मेहनत की। उस हार्ड वर्क का नतीजा ये निकला की शाहिद माल्या को मौसम में बड़ा ब्रेक मिला और उनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ। शाहिद का कहना है कि वह असल में अपने पापा की लाइफ जी रहे हैं। शाहिद आगे कहते हैं कि एक समय था जब वो रेडियो और टीवी में गाने सुनते थे तो वो सोचते थे कि जब उनका गाना चलेगा तो कैसा फील होगा। आज जब मेरे गाने चलते हैं, तो उन्हें खुद भी विश्वास नहीं होता है लोग उनके गाने सुनते हैं।
शाहिद आगे कहते हैं कि उन्हे कम से कम पांच अवार्ड चाहिए

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