भूख मिटाने के लिए बूढ़ी काकी ने चाटी जूठी पत्तलें

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लोक नाट्य शैली नौटंकी को लुप्त होने से बचाने के लिए आज से शुरू हुए तीन दिवसीय ‘सेलीब्रेटिंग नौटंकी’ महोत्सव के पहले दिन मुंशी प्रेमचंद की कृति ‘बूढ़ी काकी’ का मंचन अतुल यदुवंशी के निर्देशन में कमानी सभागार में किया गया, जबकि नौटंकी एडपटेशन राजकुमार श्रीवास्त ने किया है।
नौटंकी बूढ़ी काकी की प्रस्तुति के मंत्रमुग्ध करते कथानक को नौटंकी की भावानुरूप लय, ताल, संगीत की स्वरलहरियों से जो गति मिली उससे प्रेक्षागृह में उपस्थित हर ऑख नम हो गई। अतुल यदुवंशी ने नौटंकी जैसी जीवन्त, रसवन्त और बेहद संप्रेषणशील शैली के पुनरूत्थान और उत्कर्ष में जो नए आयाम जोड़े हैं वो आने वाले समय में प्रेरणा के स्रेत के तौर पर जाने जाएंगे। मुंशी जी की कथाएं सामाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं खासकर उस वर्ग का जो कि सदैव उपेक्षित रहा और समय की मार सबसे ज्यादा झेली। बूढ़ी काकी की व्यथा-कथा हर किसी को सोचने को मजबूर कर देती है। बुद्धिराम के बड़े लड़के का तिलक आया है, घी और मसाले की क्षुधावर्धक सुगन्ध चारों ओर फैली हुई थी। बूढ़ी काकी को यह स्वाद निश्चित ही बेचैन कर रहा था और पूड़ियों का स्वाद स्मरण करके उसके हृदय में गुदी होने लगती थी।
मेहमानों ने भोजन कर लिया, घर वालों ने भोजन कर लिया, बाजे-गाजे और वंचितों ने भी भोजन कर लिया लेकिन बूढ़ी काकी को किसी ने नहीं पूछा। देर रात जब बूढ़ी काकी को भूख लगी तो जूठे पत्तलों के पास बैठ गयी और जूठन खाने लगी। इस हृदय विदारक दृश्य और घटना सभी को स्तब्ध कर देने वाली थी। कलाकार डॉ. सोनम सेठ, प्रिया मिश्रा, नीरज अग्रवाल, धीरज अग्रवाल, सचिन केशरवानी एवं माया तिवारी आदि ने अपनी अपनी भूमिका सशक्त तरीके से निभाई। संगीत पक्ष दिलीप कुमार गुलशन, मुहम्मद साजिद एवं नगीना का रहा तथा संवेदनाओं को झकझोरते आलाप रोशन पाण्डेय ने लिये।

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