एसआरएम दिल्ली-एनसीआर द्वारा एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेन्स पर आयोजित सम्मेलन ने भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरूपयोग पर डाली रोशनी

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एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेन्स (ए.एम.आर) दुनिया भर के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है, जो एंटीबायोटिक एवं अन्य एंटीमाइक्रोबियल दवाओं की क्षमता को चुनौती देता है। इस तरह के रेज़िस्टेन्स में पैथोजन (रोग पैदा करने वाले जीवाणु) उपचार के लिए प्रतिरोध उत्पन्न कर लेते हैं, ऐसे में संक्रामक बीमारी (इन्फेक्शन) से लड़ना मुश्किल हो जाता है, जिससे बीमारी लम्बे समय तक बनी रहती है। इससे न सिर्फ इलाज की लागत बढ़ती है बल्कि मृत्युदर में भी बढ़ोतरी होती है। एसआरएम युनिवर्सिटी दिल्ली-एनसीआर द्वारा ए.एम.आर पर आयोजित तीसरे अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने इस मुद्दे से निपटने के लिए आधुनिक रणनीतियों पर चर्चा की। सम्मेलन का उद्देश्य था आपसी सहयोग एवं बहु-आयामी दृष्टिकोण के द्वारा ए एम आर के कारण होने वाली चुनौतियों को हल करना तथा आधुनिक दवाओं की खोज एवं वैक्सीन के विकास के लिए अवसरों का पता लगाना।

कार्यक्रम का उद्घाटन हरियाणा के माननीय राज्यपाल श्री बंदारू दत्तात्रेया ने किया, जो इस अवसर पर मुख्य अतिथि थे। उन्होंने विश्वस्तरीय स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के अनुरूप ए.एम.आर के मुद्दे को हल करने की तात्कालिकता तथा आठ देशों की विश्वस्तरीय भागीदारी पर रोशनी डाली। राज्यपाल ने ए.एम.आर से निपटने के लिए आधुनिक दृष्टिकोण तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसे प्रयासों को समर्थन प्रदान करने और राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों को हासिल करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

प्रोफेसर (डॉ) परमजीत एस. जसवाल, वाईस चांसलर, एसआरएम युनिवर्सिटी ने सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले सभी उपस्थितगणों का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘हमारा उद्देश्य फार्मास्युटिकल कंपनियों, शोधकर्ताओं एवं अकादमिकज्ञों के साथ साझेदारी के माध्यम से एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेन्स के विकास को रोकना और इसके बारे में जागरुकता बढ़ाना है।

नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर एडा ई. योनथ की मौजूदगी सभी उपस्थितगणों के लिए विशेष अवसर रहा। राइबोसोम पर उनके शोध तथा उन्हें मिले प्रतिष्ठित पुरस्कारों ने इस आयोजन के महत्व को कई गुना बढ़ा दिया।

एसआरएम ग्रुप की डॉयरेक्टर मिस हरिनी रवि ने इस समस्या के समाधान खोजने की साझा प्रतिबद्धता पर रोशनी डाली सम्मेलन के दौरान अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रोफेसर वी सैम्युल राज, पीएचडी, एफ.आर.ए.स.सी ने कहा, ‘‘एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेन्स सिर्फ भविष्य की बात नहीं; यह मौजूदा संकट है, जिस पर तुरंत कार्रवाई करने की ज़रूरत है। 2050 तक 10 मिलियन मौतों के अनुमान के साथ, स्पष्ट है कि दवाओं के प्रति हमारे दृष्टिकोण असफल हो रहे हैं, ऐसे में हमें नए विकल्प जैसे नए एंटीबायोटिक और वैक्सीन खोजने होंगे।

कुल मिलाकर एसआरएम युनिवर्सिटी, दिल्ली-एनसीआर द्वारा एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेन्स पर तीसरे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विशेषज्ञों ने एंटीबायोटिक दवाओं के दुरूपयोग और एएमआर के विकास पर चर्चा की। ए.एम.आर की मौजूदा स्थिति, विभिन्न सेक्टरों जैसे फार्मास्युटिकल कंपनियों, अकादमिक एवं शोध संस्थानों के सामुहिक प्रयासों तथा इस मूक महामारी से निपटने के लिए प्रभावी समाधानों की खोज पर विचार-विमर्श किया गया।

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